
प्यार में दुआ मांगने पर शायरी हिंदी में। – शायरी के दायरे में, प्यार की दुआ का तात्पर्य उन प्रार्थनाओं, इच्छाओं और आशाओं से है जो कोई अपने प्रिय के लिए करता है। यह प्यार और स्नेह की एक गहरी अभिव्यक्ति है, क्योंकि यह किसी व्यक्ति की अपने प्रियजन को खुश, संरक्षित और पूर्ण देखने की इच्छा को दर्शाता है। शायरी के माध्यम से, कवियों ने प्यार में होने पर महसूस होने वाली लालसा और तड़प को खूबसूरती से चित्रित किया है, साथ ही उनकी प्रार्थनाओं और इच्छाओं का उत्तर पाने की इच्छा भी दिखाई है। इस प्रकार प्यार की दुआ को शायरी के एक शक्तिशाली और महत्वपूर्ण पहलू के रूप में देखा जाता है।
प्यार में दुआ मांगने पर शायरी।
जब कभी दिल दुआ देगा,
तो नफरत को मिटा देगा,
ये बेचारा इंसान क्या देगा,
जो भी देगा खुदा देगा !
वादे से पहले ये दुआ माँग लीजिये,
या रब उसे मेरी कसम का ऐतबार हो !
तुझे पाकर सारी दुआ कुबुल हो गई है,
तू मिली तो मुझे मेरी जन्नत मिल गई है !
न जाने किसने पढ़ी है मेरे हक में दुआ,
आज तबियत में जरा आराम सा है !
तेरी मोहब्बत की तलब थी,
इसलिए हाथ फैला दिए
वरना हमने तो अपनी,
जिन्दगी की भी दुआ नहीं माँगी !
जब भी देखता हूँ किसी के हँसते हुए चेहरे,
दुआ करता हूँ इनको कभी मोहब्बत ना हो !
भूल न जाऊं माँगना उसे हर नमाज के बाद
यही सोच कर हमने नाम उसका दुआ रक्खा है !
कोई जख्म देते रहा हम हंसके सहते रहे,
भला हो जाए उसका हम दुआ देते रहे !
सच तो यह है कि दुआ ने न दवा ने रखा,
हमको जिंदा तेरे दामन की हवा ने रखा !
मांगी है दुआ इस यकीन के साथ,
कट जाए मेरी जिंदगी इस बेवफा के साथ !
ना जाने कौन मेरे हक में दुआ करता है,
डूबता भी हु तो समुन्दर उछाल देता है !
सख्त राहों में भी आसान सफर लगता है,
यह मेरी मां की दुआओं का असर लगता है !
मुश्किल राहों में जो आसान सफर लगता है,
ये मेरे माँ और बाप की दुआओं का असर लगता है !
यकीं और दुआ नजर नहीं आती मगर,
नामुमकिन को मुमकिन बना देती !
वो आ गए मिलने हमसे एक शाम तन्हाई मिटाने,
और हम समझ बैठे इसे अपनी दुआओं का असर !
दुआ को केवल दुखों में,
मांगने के लिए नहीं,
बल्कि जीने का तरीका बनाओ !
माँगा करेंगे अब से दुआ हिज्र-ए-यार की,
आखिर को दुश्मनी है दुआ की असर के साथ !
दुआएँ मिल जाये यही काफी है,
दवाए तो कीमत अदा करने पर मिल ही जाती हैं !
हमने चाहा आपको आपने चाहा किसी और को,
हमारी दुआ है की खुदा न करे तुम्हे चाहने वाला,
कभी चाहे किसी और को !
उल्फत-ए-यार में खुदा से और माँगू क्या,
ये दुआ है कि तू दुआओं का मोहताज न हो !
मैं क्या करूँ मिरे कातिल न चाहने पर भी,
तिरे लिए मिरे दिल से दुआ निकलती है !
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