
जय भगवद् गीते आरती – Jai Bhagwat Geete Aarti – जय भागवत गीते हिंदू पौराणिक कथाओं में भगवान विष्णु के आठवें अवतार, भगवान कृष्ण को समर्पित भक्ति गीतों का एक संग्रह है। महान संतों और कवियों द्वारा रचित ये गीत भगवान कृष्ण के प्रति गहरे प्रेम और भक्ति को व्यक्त करते हैं और उनके जीवन के विभिन्न प्रसंगों का वर्णन करते हैं। इन्हें धार्मिक समारोहों, त्योहारों और सत्संगों के दौरान भक्तों द्वारा शांति की भावना और परमात्मा के साथ आध्यात्मिक संबंध का आह्वान करने के उद्देश्य से गाया जाता है।
जय भगवद् गीते आरती।
जय भागवत गीते के छंद गहन आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन, प्रेम और मोक्ष की प्रकृति की अंतर्दृष्टि से ओत-प्रोत हैं। गाने भगवान कृष्ण की दिव्य लीलाओं, उनकी शिक्षाओं और प्रेम और करुणा के अंतिम अवतार के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाते हैं। इन भक्ति गीतों को जपने या सुनने से, भक्त अपने दिलों को शुद्ध करना, अपनी चेतना को उन्नत करना और सर्वोच्च सत्ता के साथ अपने बंधन को मजबूत करना चाहते हैं।
जय भगवद् गीते, जय भगवद् गीते ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणि,सुन्दर सुपुनीते ॥
कर्म-सुमर्म-प्रकाशिनि,कामासक्तिहरा ।
तत्त्वज्ञान-विकाशिनि, विद्या ब्रह्म परा ॥
जय भगवद् गीते…॥
निश्चल-भक्ति-विधायिनि, निर्मल मलहारी ।
शरण-सहस्य-प्रदायिनि,सब विधि सुखकारी ॥
जय भगवद् गीते…॥
राग-द्वेष-विदारिणि,कारिणि मोद सदा ।
भव-भय-हारिणि,तारिणि परमानन्दप्रदा ॥
जय भगवद् गीते…॥
आसुर-भाव-विनाशिनि,नाशिनि तम रजनी ।
दैवी सद् गुणदायिनि,हरि-रसिका सजनी ॥
जय भगवद् गीते…॥
समता, त्याग सिखावनि,हरि-मुख की बानी ।
सकल शास्त्र की स्वामिनी,श्रुतियों की रानी ॥
जय भगवद् गीते…॥
दया-सुधा बरसावनि,मातु! कृपा कीजै ।
हरिपद-प्रेम दान कर,अपनो कर लीजै ॥
जय भगवद् गीते…॥
जय भगवद् गीते,जय भगवद् गीते ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणि,सुन्दर सुपुनीते ॥
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